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Имя: सनत
Фамилия: मशर
Пол: мужской
Статус: sunita mishra
Последняя запись на стене: क्या मोदी 'तानाशाह' प्रधानमंत्री हैं? हाल ही में नरेंद्र मोदी सरकार का एक साल पूरा हुआ है, लेकिन कई वजहों से प्रधानमंत्री मोदी को कई लोग एक तानाशाह के रूप में देखते हैं. विपक्षी दल ख़ासकर कांग्रेस, जो पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नए अवतार में आने के बाद उत्साह में हैं, मोदी सरकार को बुरी तरह से फटकार लगा रहे हैं. कुछ आलोचकों का मानना है कि मोदी देश को उसी तर्ज़ पर चलाना चाह रहे हैं जैसा उन्होंने गुजरात को 15 साल तक चलाया. उन्होंने अपने भारी-भरकम चुनाव प्रचार अभियान के दौरान गुजरात मॉडल को पूरे देश में लागू करने का वादा भी किया था. वे हालांकि जानते हैं कि एक ताक़तवर मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य में वे जो कर सकते हैं वैसा प्रधानमंत्री के तौर पर पूरे देश में नहीं कर सकते हैं. मसलन नरेंद्र मोदी ने अपने आप को गुजरात की राजधानी गांधीनगर में जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयं सेवक के नियंत्रण से आज़ाद कर रखा था वैसा वे दिल्ली में नहीं कर सकते हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं) भड़काऊ बयानबाज़ी गांधीनगर में मोदी ने कट्टरवादी प्रवीण तोगड़िया को पूरी तरह से हाशिए पर रखा था. तोगड़िया ने मोदी को सत्ता में आने में मदद की थी. अब तोगड़िया फिर से एक नेता के रूप में उभर रहे हैं और पूरे देश में घूमकर कट्टर हिंदुत्व का पाठ पढ़ा रहे हैं. संघ परिवार से जुड़े कई सदस्यों, जिनमें बीजेपी के कई सांसद और मंत्री भी शामिल हैं, ने मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ उत्तेजक बयानबाज़ी की है. उन लोगों ने 'घर वापसी' जिसका मतलब है हिंदूवाद की ओर वापस चलो, का समर्थन किया है. कोई कार्रवाई नहीं ऐसे ही दो राजनेताओं को निलंबित करने की मांग उठ चुकी है जिन्होंने हिंदू औरतों से कम से कम चार बच्चे पैदा करने को कहा था. इनमें से किसी भी राजनेता पर ना ही कोई कार्रवाई की गई और ना ही मोदी ने उनकी सार्वजनिक रूप से निंदा की है. उन्होंने कुछ मंत्रियों के ऊपर यह छोड़ दिया कि वे सरकार को इन बयानों से दूर रखें. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार कहा, "भारत में रहने वाला हर कोई हिंदू है." इस पर मोदी सरकार सिर्फ यह कह सकी कि ये भागवत के निजी विचार है. मोदी के औज़ार इसमें कोई शक नहीं है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रभुता कायम की है, 'पूरी तरह से नहीं, लेकिन बहुत हद तक'. इसके लिए नरेंद्र मोदी ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दूसरे संदर्भ में इस्तेमाल किए गए शब्दों का सहारा लिया है. प्रधानमंत्री इन सवालों को टालते हुए कहते हैं, "मेरे लिए भारत का संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ है और मेरा एकमात्र उद्देश्य 'सबके साथ, सबका विकास' है." उनकी वाकशैली ने देश और बाहर हर जगह लोगों को प्रभावित किया है. पार्टी और सरकार पर कड़ा नियंत्रण रखने के लिए मोदी के पास दो औज़ार हैं. सरकार के अंदर कोई भी राजनेता या नौकरशाह प्रधानमंत्री कार्यालय की हरी झंडी मिले बिना कुछ भी नहीं कर सकता और प्रधानमंत्री कार्यालय में इन दिनों गुजरात कैडर के कुछ उन चुनिंदा अफसरों का दबदबा है जिन्होंने गुजरात में भी मोदी के साथ काम किया है. सत्ता का केंद्रीकरण बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह प्रधानमंत्री के अंतरंग मित्र हैं. बीजेपी के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ पत्रकार अरुण शोरी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा, "वर्तमान सरकार में सिर्फ़ तीन लोग मोदी, अमित शाह और अरुण जेटली हैं." सरकार की इस कटु आलोचना के बावजूद अरूण शोरी मोदी के चहेते बने हुए हैं. अहम सवाल यह है कि मोदी की तुलना उनके 13 पूर्ववर्तियों से कैसे की जाए और उनमें से कितनों ने तानाशाह होने की कोशिश की थी और अगर की भी थी तो किस हद तक उन्हें सफलता मिली थी? इसका बहुत ही साफ और संक्षिप्त सा जवाब है. इंदिरा गांधी एक अपवाद थीं, जिन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री की ताक़त को केंद्रीकृत किया और बाद में इसे अपने हाथों में लेकर इसपर अमल किया. रोल मॉडल इंदिरा गांधी यह महज़ इत्तेफाक नहीं कि कई राजनीतिक विश्लेषक कहते आए हैं कि मोदी की रोल मॉडल इंदिरा गांधी हैं. कुछ मामलों में तो इंदिरा, मोदी से भी आगे थीं. आपातकाल के बाद 1977 के चुनावी हार से ज्यादा अपमानजनक कुछ भी नहीं हो सकता क्योंकि लोग आपातकाल के 19 महीने के भयानक दुस्वपन के बाद उनसे नफ़रत करने लगे थे. फिर भी 30 महीने के बाद एक बार फिर चुनावी जीत उन्हें सत्ता में वापस ले आईं. इसके अलावा कई सालों तक गूंगी गुड़िया का दिखावा करने के बाद वे अपराजेय 'देवी दुर्गा' के रूप में सामने आईं. तानाशाह ? मार्च 1971 में इंदिरा गांधी ने ना सिर्फ लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की, बल्कि उसी साल 16 दिसंबर को उनके नेतृत्व में भारतीय फौज ने बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई फतह की. मोदी पहले दिन से तानाशाही रवैया अपनाए हुए हैं. आइए अब जानते हैं दूसरे पूर्व-प्रधानमंत्रियों के बारे में. किसी के लिए एक पल के लिए भी यह मानना हास्यास्पद होगा कि जवाहरलाल नेहरू कभी भी तानाशाह बनना चाहते थे. हालांकि नवंबर 1937 में किसी ने कलकत्ता मॉडर्न रिव्यू में लिखा था, "जवाहरलाल नेहरू से सतर्क रहे. ऐसे लोग ख़तरनाक होते हैं...वे अपने आप को लोकतांत्रिक और समाजवादी कहते हैं....लेकिन वे एक तानाशाह में बदल सकते हैं...." नेहरू का नेतृत्व हालांकि वास्तविकता यह है कि अगर महात्मा गांधी भारत के मुक्तिदाता थे तो नेहरू भारत में लोकतंत्र और इसे मज़बूत बनाने वाले सभी संस्थाओं के संस्थापक थे. इसके अलावा कांग्रेस में और भी कई क़द्दावर नेता थे. वाकई में नेहरू के लगभग बराबरी का कोई राजनेता था तो वे सरदार पटेल थे और यह कहना बड़बोलापन नहीं होगा कि 15 अगस्त, 1947 से 15 दिसंबर, 1950 तक (सरदार पटेल की मृत्यु का दिन) देश को इन दोनों ने ही चलाया. इसके बाद भी नेहरू के नेतृत्व में दिग्गजों की कमी नहीं रही. फिर चाहे मौलाना आज़ाद हो, राजेंद्र प्रसाद हो, या राजाजी जैसे और भी कई. कांग्रेस नेताओं में मोरारजी देसाई अकेले ऐसे राजनेता थे जिनके अंदर तानाशाही रुझान था. इसी वजह से वे उत्तराधिकार की लड़ाई एक नहीं, तीन बार हारे. आख़िरकार जब वे जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री बने भी तो उनके पास ज्यादा अधिकार नहीं थे. चरण सिंह और जगजीवन राम लगातार उन्हें हटाने की कोशिश में लगे थे. आखिरकार चरण सिंह को इसमें सफलता मिल भी गई. वाजपेयी और मोदी सबसे महत्वपूर्ण और दिलचस्प तुलना बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की है. वाजपेयी भगवा पार्टी का उदार चेहरा हैं. वे सामंजस्य स्थापित करने में महिर थे. वे एक समां बांध देने वाले वक्ता थे और एक ऐसे राजनेता थे जिनकी तारीफ़ बीजेपी के धुर विरोधी भी करते थे. साल 1996 में बनी उनकी सरकार 13 दिनों की थी. दो साल के बाद विशाल गठबंधन से बनी उनकी कमज़ोर बहुमत की सरकार एक साल पूरा करने के बाद औंधे मुंह गिर गई. वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 1999 के आम च
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